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सपा ने हारकर भी बढ़ाया वोट प्रतिशत, गठन के बाद अब तक का सर्वाधिक 32 फीसदी मिला वोट

उत्तर प्रदेश में आए विधानसभा के नतीजों ने साफ कर दिया है कि एक बार फिर प्रदेश में बीजेपी की ही सरकार बनेगी. समाजवादी पार्टी ने इस चुनाव में बहुत मेहनत की थी, लेकिन वो सरकार बनाने में कामयाब नहीं रही. सपा बहुमत से काफी कम सीटे ही ले सकी, लेकिन कहीं ना कहीं सपा इस बार जनता के दिल में जगह बनाने में जरूर कामयाब रही है. ये बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि इस बार सपा का वोट प्रतिशत पहली बार इतना ज्यादा बढ़ा है. पहली बार 1993 में चुनाव लड़ने पर पार्टी को 17.94 फीसदी वोट मिले थे. तब बसपा के साथ मिलकर सपा ने सरकार बनाई थी, लेकिन इस बार पार्टी को अब तक का सबसे ज्यादा 32% वोट मिलने के बाद भी उसे सत्ता से दूर रहना पड़ रहा है.

1996 में 13वीं विधानसभा के चुनाव में सपा को 21.80 फीसदी, 2002 में 25.37 फीसदी, 2007 में 25.43 प्रतिशत, 2012 में 29.13 फीसदी और 2017 के चुनाव में सपा को 21.82 फीसदी वोट मिले थे. सपा ने इस बार महंगाई, आवारा पशु, पुरानी पेंशन और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को हवा जरूर दी थी, लेकिन इसका उसे बहुत फायदा नहीं मिला. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस चुनाव में जीत के लिए इस बार रालोद को साथ लिया था.

अखिलेश और जयंत मिलकर भी पैदा नहीं कर सके बीजेपी के रास्ते में रुकावट

अखिलेश और जयंत ने सोशल मीडिया पर फोटो वायरल कर खुद की एका का प्रमाण भी दिया था. इसके बाद बीजेपी के 2014, 2017 और 2019 में रथ की रेस से आगे निकलने के लिए अखिलेश विजय रथ पर सवार हुए. शुरुआत में लगा कि अखिलेश-जयंत बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है, लेकिन पीएम मोदी और सीएम योगी ने उनके विजयरथ पर ब्रेक लगा दिया.

बीजेपी ने हर जगह दिया अलग नारा

विधानसभा चुनाव में बीजेपी पश्चिम से पूरब और अवध से बुंदेलखंड तक अलग-अलग चुनावी मुद्दों के जरिए 80 बनाम 20 के नारे के साथ ध्रुवीकरण को धार देने में सफल रही. बीजेपी ने पश्चिम में पलायन, पूरब में माफिया पर वार के साथ अयोध्या और काशी से भी समीकरण साधे. बीजेपी ने पहले और दूसरे चरण के चुनाव में कैराना से पलायन, मुजफ्फरनगर दंगे को तो तीसरे से पांचवें चरण में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे, दीपोत्सव, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे और गंगा एक्सप्रेसवे के जरिए विकास के साथ राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनाव लड़ा. छठे और सातवें चरण में माफिया मुख्तार और अतीक अहमद पर कार्रवाई के साथ पूर्वांचल से दिमागी बुखार की बीमारी का अंत और विकास को मुद्दा बनाया.

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