भाषा एवं संस्कृति हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती हैः आर.पी.सिंह
- – विश्व हिन्दी दिवस पर उ.प्र. हिन्दी संस्थान में हुई ‘हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य‘ विषय पर संगोष्ठी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से मंगलवार को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के शुभ अवसर पर ‘हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। लखनऊ के हजरतगंज स्थित हिन्दी भवन आयोजित कार्यक्रम में सुन्दरीकृत हुए प्रेमचन्द्र सभागार का लोकार्पण संस्थान के निदेशक आर.पी.सिंह ने किया।
संगोष्ठी में आए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान के निदेशक ने विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं दी और कहा कि भाषा एवं संस्कृति हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती है। किसी भी देश की उन्नति उसकी अपनी मातृ भाषा एवं उसकी संस्कृति से ही होती है। हमें अपनी मातृ भाषा का सम्मान करना चाहिए। भाषा रोजगार के साथ-साथ यदि हमारे व्यक्तित्व का भी निर्माण भी करे वही भाषा देश व समाज के लिए अति उत्तम व सबको अपने में समाहित करने वाली हो सकती है।
मनोरमा ईयर बुक के सर्वेक्षण के अनुसार हिन्दी विश्व की दूसरी भाषा हैः डॉ. रविनन्दन सिंह
प्रयागराज से आए डॉ. रविनन्दन सिंह ने कहा कि ‘हिन्दी का विकास एक दिन में नहीं हुआ है। हिन्दी में बोलियों का सम्मिश्रण है। हिन्दी बोलियों का विस्तृत रूप है। सभी संस्कृतियों में यही मान्यता है कि भाषा ईश्वरीय देन है, परन्तु धीरे-धीरे यह मान्यता टूटी फिर भाषा को समाज की देन माने जाने लगा। समाज में भाषा से ही सम्मान मिलता है। मनोरमा ईयर बुक के सर्वेक्षण के अनुसार हिन्दी विश्व की दूसरी भाषा है। विश्व के अधिकांश देशों में हिन्दी बोलने वाले और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छत्राएं हैं। विश्व प्रवासी भारतीयों के माध्यम से हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार व्यापक स्तर पर हो रहा है। भाषा व्यक्ति की पहचान है। हिन्दी भाषा हमारी मां समान है।
विश्व के 137 देशों में हिन्दी का व्यापक प्रयोग व विस्तार हो रहा हैः डॉ. कैलाश देवी सिंह
डॉ. कैलाश देवी सिंह ने कहा ने कहा कि विश्व में हिन्दी का प्रचार-प्रसार बढ़ा है। हिन्दी को सीखने वाले की संख्या बढ़ी हैं। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी सीखने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। स्वतंत्रता के बाद दक्षिण के अहिन्दी भाषी प्रदेशों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने पर काफी विरोध किया। आज भारत में हिन्दी का व्यापक विस्तार हो रहा है। भाषा का विकास उसकी उपयोगिता के आधार पर होता है। हिन्दी की प्रतिष्ठा व पहचान बढ़ी है। शिक्षक, सहित्यकार, प्रशासक व उसका प्रयोग करने वाली जनता ही किसी भाषा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका है। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है जिससे हिन्दी भाषा का निरन्तर पहचान बढ़ रही है। हमें अपनी भाषा को रोजगार की भाषा बनाने का प्रयास करना होगा। भाषा रोजगारपरक होगी तो सीखने में रुचि बढ़ेगी। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 137 देशों में हिन्दी का व्यापक प्रयोग व विस्तार हो रहा है। हिन्दी के लिए अभी बहुत कुछ करने को शेष है।
भाषा के क्षेत्र में भारत विश्व में सबसे धनी देश हैः डॉ. पूरनचंद टण्डन
दिल्ली से पधारे विद्वान डॉ. पूरनचंद टण्डन ने कहा कि ‘साहित्य की सृजनशीलता काफी प्राचीन रही है। स्वतंत्रता के बाद शासन व्यवस्था के परिचालन के लिए किस भाषा को चयन किया जाय, एक बड़ी समस्या थी। हिन्दी ने काफी संघर्ष और गुलामी के काल को देखा। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से आज हिन्दी निरन्तर बढ़ रही है। जार्ज ग्रियर्सन ने कहा भाषा के क्षेत्र में भारत विश्व में सबसे धनी देश है। हिन्दी भाषा कई भाषाओं को अपने में समाहित व आत्मसात करने की क्षमता है।
हिन्दी सेवी संस्थाओं ने हिन्दी को विश्व स्तर पर पहुंचाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दक्षिण भारत में भी हिन्दी के शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्य किया जा रहा है जो सुखद स्थिति है। इससे पहले कार्यक्रम की शुरूआत में निराला जी की अमर पंक्तियां ‘वर दे वीणा वादिनी वर दे‘ की संगीतमय प्रस्तुति रत्ना शुक्ला व सुनील शुक्ला ने प्रस्तुत की। संस्थान की प्रधान सम्पादक डॉ. अमिता दुबे कार्यक्रम का संचालन किया और आए साहित्यकारों, विद्वत्तजनों का आभार व्यक्त किए।