अमेठीउत्तर प्रदेशधर्म-आस्था

मुकेश आनंद जी महाराज द्वारा कही जा रही श्री राम कथा का आज आठवां दिन।

अष्टम दिवस की कथा भगवान राघवेंद्र सरकार के चित्रकूट निवास के पश्चात प्रारंभ हुई श्री सुमंत्र जी का वापस आना राजा दशरथ का राम के लिए बिलख ना सुमंत्र जी द्वारा राम का संदेश देते हुए प्रणाम करना एवं राम सीता लक्ष्मण की याद में राजा दशरथ का हा राम हा राम हा राम करते हुए प्राण छोड़ना हा रघुनंदन प्राण पिरिते तुम बिन जियत बहुत दिन बीते राजा दशरथ ने शरीर छोड़ दिया गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं राजा दशरथ ने जीना और मरना दोनों सवार लिया मनुष्य रूप में जीवित रहकर बेटा राम जैसा पाया और मृत्यु के समय परमात्मा राम का नाम लेते हुए शरीर छोड़े व्यास गद्दी पर विराजमान श्री मुकेश आनंद जी ने कहा मानव की धन्यता इसी में है हम जब तक संसार में रहे तब तक अपने महल को मंगल भवन बना रखें और हमारे घर के बच्चे राम बन जाएं परंतु जब शरीर छूटने वाली हो तो कर में माला लेकर के सांसो की माला तक की यात्रा करते हुए अंतिम श्वास राम के नाम के साथ विश्राम हो राजा दशरथ ने मृत्यु के समय अंधे माता पिता के पुत्र श्रवण कुमार के कारण श्राप से मृत्यु प्राप्त किए तत्पश्चात भारत आगमन वशिष्ठ का भरत जी को अयोध्या में हुई घटनाओं से रूबरू करवाना पिता की लाश को मुखाग्नि देना एवं बड़े भाई राघवेंद्र सरकार को मनाने समस्त पुर वासियों के संग जाना सभी मिलकर जब निकले तो भरत जी ने  अधिकारियों से कहा अयोध्या की जो संपत्ति है वह मेरी नहीं है सब संपत्ति रघुपति कए आही अतः इसकी चिंता आप सब करें ऐसे ही कथा के माध्यम से गोस्वामी जी  इतना कहते हैं संसार में जो संपत्ति है वह परमात्मा की है हम केवल उसके नियोजक हैं भरत जी का श्रृंगवेरपुर पहुंचना एवं अपने भाई के मित्र राजा गुह को देख करके उनके चरणों में जाना यह समरसता का एवं भाई के प्रति समर्पण का सबसे बड़ा उदाहरण है माता गंगा को प्रणाम करना केवट के संग उस पार जाना पदयात्रा करते हुए भरद्वाज मुनि के आश्रम में पहुंचना प्रयागराज के चरणों में बैठकर के भीख मांगना सीताराम चरण रति मोरे अनु दिन बढ़ाहि अनुग्रह तोरे क्रमसा बढ़ते हुए चित्रकूट की ओर जाना भारत का राम  बोलने से रास्ते में स्थान स्थान के पत्थरों का पिघल जाना ऐसे भावपूर्ण कथा से श्रोताओं का हृदय बार-बार द्रवित हो जा रहा था राम एवं भरत का मिलन भरत द्वारा राम का मनाना और अंत में राम का भरत जी को पुनः मना करके अयोध्या भेजना और भरत जी के द्वारा राम की चरण पादुका को शीश पर लेकर के अयोध्या आना नंदीग्राम में निवास करने तक की कथा का गायन हुआ

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