निराला के साहित्य में प्रखर राष्ट्रीय चेतना पड़ती है दिखाई हैः डॉ. अभिषेक शर्मा

- उ.प्र. हिन्दी संस्थान में सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘, सुमित्रानन्दन पंत एवं लक्ष्मीनारायण मिश्र की स्मृति में आयोजित हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से जयशंकर प्रसाद एवं महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘, सुमित्रानन्दन पंत एवं लक्ष्मीनारायण मिश्र की स्मृति में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन के प्रेमचन्द सभागार में किया गया।
संगोष्ठी में डॉ. अभिषेक शर्मा ने कहा कि निराला में अद्भुत रचनात्मक क्षमता थी। निराला को उनके साहित्यिक जीवन में काफी विरोधाभासों का सामना करना पड़ा। ‘राम की शक्ति पूजा‘ रचना में उन्होंने ने राम की शक्ति व उनके चरित्र का सुन्दर वर्णन किया है। निराला परम्परा वादी व आधुनिकता के सेतु कवि हैं। प्रसाद, महादेवी, निराला, पंत में तुलनात्मक रूप में यह नहीं कहा जा सकता कि कौन बड़ा है या कौन छोटा है। निराला के साहित्य में प्रखर राष्ट्रीय चेतना दिखायी पड़ती है। वे सामाजिक पुनर्गठन की बात अपनी रचनाओं में करते हैं। निराला की तुलसीदास रचना हमें आत्मपरीक्षण का संदेश देती हैं। निराला का मानना था कि मनुष्य को सुधारना संभव नहीं है। निराला कालजयी कवि हैं।
डॉ. अजय कुमार ने कहा कि निराला ने विपुल आध्यात्मिक काव्यों की रचना की। निराला की कविताएँ सामाजिक कुरीतियों से टकराती हैं। उनकी रचनाओं में आध्यात्मिक तत्वों की प्रवाह मानता है। छायावादी काव्य राष्ट्रीय जागरण से भरा हुआ है। निराला पर उनके जीवन संघर्षों का व्यापक प्रभाव पड़ा और इसका प्रभाव उनकी रचनाओं में दिखायी पड़ता है। भक्ति सिद्धान्त ने भी निराला के जीवन को प्रभावित किया। स्वामी विवेकानन्द व रामकृष्ण परमहंस के काव्य व उनके विचारों की झलक निराला की रचनाओं में मिलती हैं।
डॉ. ऋषि कुमार मिश्र ने कहा कि निराला ‘वह तोड़ती पत्थर‘ में मर्यादित काव्य रचना करते हैं। निराला की वन्दना विश्व व्यापकतापूर्ण लिए सर्वहितकारी है। ‘सरोज स्मृति‘ उनकी प्रसिद्ध रचना है। वे पराधीनता को महान दुःख मानते थे। स्वतंत्रता के लिए जनमानस को जगाने का कार्य करते
कपिलवस्तु से पधारे डॉ. सत्येन्द्र दुबे ने कहा कि सुमित्रानन्दन पंत अपनी कविता ‘तम्बाकू और धुआं‘ में भक्ति की कल्पना करते हैं। वह कहते है कि कविता परिपूर्ण क्षणों की वाणी है। पंत की पूरी काव्य यात्रा आध्यात्मिक यात्रा है। सूक्ष्मता का चिन्तन आध्यात्मिक चिंतन कहलाता है। पंत की आध्यात्मिक चेतना उस समय की मांग थी। पंत की रचनाओं में प्रकृति प्रेम पर्याप्त दिखायी देता है। ‘नौका विहार‘ में पंत ने प्रकृति प्रेम व प्रकृति सौन्दर्य का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है।
डॉ. श्रुति ने कहा- पंत जी की रचना ‘पल्लव‘ ने उन्हें ख्याति प्रदान की। पंत और ‘पल्लव‘ अपने काव्य में साहित्य में दैदीप्यमान रहे। पंत के काव्य में प्रकृति नानारूपों में प्रारम्भ से अंत तक छायी रही। पंत प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं। वे अपनी रचनाओं में प्रकृति के पास जाने का प्रयास करते हैं। छायावाद में प्रकृति के समीप कवि अपने आप को पाते हैं। पंत ने प्रकृति को अपनी भावनाओं का लिबास (वस्त्र) पहनाया है। प्रकृति का चित्रण अवलम्ब के माध्यम से की जाती है। पंत की प्रस्तुतिकरण की अपनी विशिष्ट शैली रही है। पंत की कविता में प्रकृति व भारत की संस्कृति परिलक्षित होती है।
भोपाल से आए डॉ. विनय षडंगी राजाराम ने कहा कि लेखक ही नहीं उसकी रचनाएं भी कालजयी होती हैं। विम्ब विधान की प्रक्रिया ही चित्रात्मकता है। कलात्मकता से भावनाओं को प्रकटता मिलती है। जब भाषा नहीं थी तो तब भी चित्रात्मकता थी। जब भाषा के माध्यम से भावना को नहीं प्रकट कर सकते हैं तब चित्रात्मकता का सहारा लिया जाता है। पंत की कविताएं विम्ब विधान पूर्ण हैं। चित्रकार अपने चित्रों के माध्यम से भावनाओं को प्रकट करने का प्रयास करता है। पंत की भाषा शैली बिम्ब प्रधान आधारित है।
डॉ. हरिशंकर मिश्र ने कहा-साहित्यकारों को अग्रणी बनाने में समीक्षकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। लेखक रचनाकार को जानने के लिए उसके व्यक्तित्व एवं परिवेश व पृष्ठभूमि की जानकारी होनी चाहिए। परम्परा के बिना प्रकति का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है। लक्ष्मी नारायण मिश्र सामन्ती परिवार के थे। लक्ष्मी नारायण मिश्र का जीवन संघर्षपूर्ण रहा है। उनके व्यक्तित्व का निर्माण विसंगतियों के बीच रहा है। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें महाप्राण कहा है। लक्ष्मी नारायण मिश्र की मान्यता थी कला-कला के सिद्धान्त को वे नहीं मानते थे। कला की सुन्दरता यह नहीं है कि मनुष्य को सुलादे बल्कि मनुष्य को सक्रिय बना दे। साहित्य को राजनीति से अगल नहीं किया जा सकता है। उन्होंने विदेशी संस्कृति की आलोचना की। साहित्य जीवन की आलोचना नहीं जीवन का अनुभव है।
इस अवसर पर आराधना संगीत संस्थान के माध्यम से संगीत एवं हारमोनियम वादन सुबोध कुमार दुबे, तबला वादन मनीष मिश्र ने किया। आक्टो पैड पर अनादि देशमुख, गायन सुश्री सरोज खुल्बे, सुश्री रिचा चतुर्वेदी द्वारा प्रस्तुत किया गया। उ.प्र. हिन्दी संस्थानकी प्रधान सम्पादक डॉ. अमिता दुबे ने कार्यक्रम का संचालन किया।