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अब पोर्टल बताएगा सिंचाई के हाईटेक उपकरणों की स्थिति, गुजरात की तर्ज पर यूपी में संचालित होगी ‘पर ड्राप मोर क्राप’ योजना

लखनऊ। अब केंद्र सरकार की ‘पर ड्राप मोर क्राप’ योजना के तहत सिंचाई के हाईटेक उपकरण स्प्रिंकलर, मिनी स्प्रिंकलर, पोर्टेबल स्प्रिंकलर, रेन गन व ड्रिप मिलना किसानों के लिए आसान हो जाएंगे। जो आवेदन करने के बाद खुद आनलाइन जानकारी कर सकेंगे कि कहां और किस स्थिति में उनके आवेदन पहुंचे हैं। उत्तर प्रदेश में उद्यान विभाग गुजरात की तर्ज पर यह व्यवस्था करने जा रहा है।

इसके लिए गुजरात की ग्रीन रिवोल्यूशन कंपनी योजना का आईटी बेस्ड पोर्टल तैयार कर रही है। जिस पर पंजीकरण के अलावा स्वीकृति आदेश, ले-आउट डिजाइन, बिल आफ क्वाटिंटी की अपलोडिंग, स्थापना, जियो टैगिंग, भुगतान, निर्धारित टाइम लाइन किसान, निर्माता फर्म व विभागीय अधिकारी व कर्मचारी देख सकेंगे। यह व्यवस्था पारदर्शिता के लिए की जा रही है। जिसका लाभ किसानों के अलावा बाहरी नहीं उठा पाएगा।

थर्ड पार्टी करेगी सत्यापन

वर्तमान में जो पोर्टल संचालित है उस पर किसी तरह की हाईटेक व्यवस्था नहीं है। इससे आवेदनों की स्थिति पता नहीं चलती है। उद्यान विभाग ही आवेदन लेकर सत्यापन व स्वीकृति से लेकर सभी कार्य करता है। लेकिन, अब नई व्यवस्था के तहत सत्यापन का कार्य एक निजी कंपनी को थर्ड पार्टी के तौर पर दिया जाएगा। जो पोर्टल पर आए आवेदनों की भौतिक जांच करेगी। जिसमें उद्यान विभाग का हस्तक्षेप नहीं होगा।

गुजरात में सफल हुई यह व्यवस्था

गुजरात में यह व्यवस्था सफल हुई है। 2005 से अबतक 21 लाख हेक्टेयर में पर ड्राप मोर क्राप योजना के उपकरण किसानों ने अनुदान पर लेकर लगाए हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में 4.10 लाख हेक्टेयर में उपकरण लगे हैं। यह उपकरण काफी महंगे हैं। जिसे अनुदान पर पाने के लिए मारामारी रहती है। इनकी खासियत है कि यह उपकरण 80 फीसद तक बिजली व पानी बचाते हैं। श्रम भी बचता है।

ऊबड़-खाबड़ और ऊंची-नीची जगह में कारगर

यह उपकरण खेतों पर लगाना आसान है और इस्तेमाल के बाद हटा सकते हैं। इसलिए सरकार का खासकर बुंदेलखंड क्षेत्र में जोर है। यह उपकरण उत्तराखंड में ज्यादा इस्तेमाल होते हैं। जो ऊबड़-खाबड़ व ऊंची-नीची जगह में सिंचाई करने के लिए कारगर हैं। स्प्रिंकलर पानी की बौछार कर सिंचाई करता है।

जबकि रेनगन घूम-घूम कर खेतों में पानी फेंकती है। इसी तरह ड्रिप बूंद-बूंद पौधों को पानी देकर सींचते हैं और इस विधि से पौधों को उनकी क्षमता के अनुसार पर्याप्त पानी मिलता है। जबकि सामान्य विधि से पानी की मात्रा अधिक रहती है और जलभराव के कारण ज्यादा पानी मिलने से पौधे नष्ट हो जाते हैं। इसलिए लागत अधिक आने के साथ पैदावार घटती है। जो पौधे पनपते हैं उनमें गुणवत्ता नहीं आती है।

पारदर्शिता के लिए पोर्टल बनाया जा रहा है। जिसकी प्रक्रिया चल रही है। इसका किसानों को लाभ मिलेगा। उनके लिए प्रक्रिया भी आसान हो जाएगी। कंपनी से पोर्टल संबंधित एमओयू भी पहले हो चुका है …

डॉ. आरके तोमर, निदेशक उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उप्र।

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