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आर्मी एविएशन चीता और चेतक की विदाई करके युद्धक शक्ति बढ़ाने की तैयारी में

  • – सेना के पास 190 चीता और लगभग 134 चेतक हेलीकॉप्टर 30 वर्ष से ज्यादा पुराने
  • – ‘लाइफलाइन’ रहे चीता और चेतक हेलीकॉप्टरों के पुराने बेड़े को बदलने की जरूरत

नई दिल्ली। आर्मी एविएशन ने चीता और चेतक हेलीकॉप्टरों के पुराने बेड़े की विदाई करके अपनी युद्धक शक्ति बढ़ाने की तैयारी तेज कर दी है। सेना के हवाई बेड़े में स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (एलसीएच) और अमेरिकी अपाचे अटैक हेलीकॉप्टरों को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू की गई है जिसे 2024 तक पूरा किया जाना है। मौजूदा समय में सेना के पास 190 चीता और लगभग 134 चेतक हेलीकॉप्टर हैं, जिनमें 70% से अधिक 30 वर्ष से ज्यादा पुराने हैं।

सेना के लिए लम्बे समय तक ‘लाइफलाइन’ रहे चीता और चेतक हेलीकॉप्टरों के पुराने बेड़े को बदलने की जरूरत काफी समय से जताई जा रही है। नतीजतन, आर्मी एविएशन ने अब अपनी युद्धक शक्ति को बढ़ाने की तैयारी तेज कर दी है। आर्मी एविएशन कॉर्प्स 2024 से स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (एलसीएच) और अमेरिकी अपाचे अटैक हेलीकॉप्टरों को बेड़े में शामिल करने की प्रक्रिया में है।

सेना ने 01 जून को बेंगलुरु में स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर की पहली स्क्वाड्रन विकसित की है, जो एक साल बाद पूर्वी कमान में चली जाएगी। कुल मिलाकर ऐसी सात एलसीएच स्क्वाड्रन बनाने की योजना है, जिनमें से प्रत्येक स्क्वाड्रन में पहाड़ी इलाकों में लड़ाकू भूमिकाओं के लिए 10 हेलीकॉप्टर होंगे। एक रक्षा अधिकारी ने कहा कि युद्ध क्षमता बढ़ने के साथ ही टोही और निगरानी क्षमताएं प्रभावित होने वाली हैं, जब तक कि के-226 टी और स्वदेशी लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एलयूएच) को एक साथ शामिल नहीं किया जाता है। एलयूएच को पर्याप्त संख्या में आने में समय लगेगा।

भारतीय सेना के पास मौजूदा समय में लेह, मिसामारी और जोधपुर में एविएशन ब्रिगेड हैं। इन तीनों ब्रिगेड से लगभग 145 स्वदेशी उन्नत हल्के हेलीकॉप्टरों (एएलएच) का संचालन किया जाता है, जिनमें से 75 रुद्र हथियार युक्त संस्करण हैं। अन्य 25 एएलएच एमके-III ऑर्डर पर हैं, जिन्हें दो साल के भीतर सेना में शामिल कर लिया जाएगा। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने अमेरिका से 39 एएच-64 अपाचे अटैक हेलिकॉप्टरों की खरीद को मंजूरी दी थी। इस पर भारत ने फरवरी, 2020 में छह अपाचे हेलीकॉप्टरों के लिए लगभग 800 मिलियन डॉलर की लागत से एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। कोरोना महामारी के कारण इनकी डिलीवरी में देरी हुई है लेकिन अब वे 2024 की शुरुआत में भारत को मिल जायेंगे।

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