लखीमपुर कांड : आशीष मिश्र को दोहरा झटका, जिला अदालत में 26 अप्रैल को तय होंगे आरोप
तिकुनिया हिंसा मामले में हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद मुख्य आरोपी आशीष मिश्र मोनू की तरफ से जिला अदालत में जहां केस को ही सिरे से खारिज करने की बात कही जा रही थी, वहीं सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मंत्री पुत्र को दोहरा झटका लगा है। जिला अदालत में आरोप तय करने को लेकर जहां 26 अप्रैल की तारीख तय है, वहीं उससे पहले ही 25 अप्रैल तक आशीष मिश्र को सुप्रीम कोर्ट ने वापस आत्मसमर्पण करने का आदेश दे दिया है।
जमानत पर छूटे मुख्य आरोपी आशीष की ओर से अदालत में डिस्चार्ज एप्लीकेशन दी गई और जोरदार तरीके से यह बात उठाई गई कि उसके खिलाफ मुकदमा चलने लायक भी कोई सबूत नहीं हैं। इसी के चलते जिला जज अदालत आरोप तय करने की कार्रवाई के बजाय पहले ही आशीष मिश्र के खिलाफ मुकदमा चलने लायक कोई सबूत, जांच या परिस्थितियां हैं या नहीं, इसी की सुनवाई में उलझ गई। हालांकि, आशीष मिश्र मोनू की ओर से दाखिल की गई डिस्चार्ज एप्लीकेशन के खिलाफ अभी तक सरकार पक्ष की ओर से कोई आपत्ति नहीं आई है, लेकिन उनके नक्शे कदम पर अन्य आरोपियों की ओर से भी डिस्चार्ज एप्लीकेशन देने की तैयारियां चल रही हैं और दोनों पक्षों को अदालत ने इसके लिए 10 दिनों की मोहलत भी दे रखी है।
इसी बीच हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति राजीव सिंह की ओर से दिए गए जमानत आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अदालती आदेश पर सवाल उठाए, जिसे सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जमानत आदेश को खारिज कर दिया। जिले में कानून और न्याय व्यवस्था से जुड़े लोग मानते हैं सुप्रीम फैसला आने के बाद लोगों का भरोसा न्यायपालिका पर बरकरार हुआ है।
हिंसा से जुड़े गवाहों पर हमले ने भी बढ़ाई मुसीबत
आशीष मिश्र मोनू की जमानत के बाद तिकुनिया हिंसा से जुड़े गवाहों पर हमलों ने भी उसकी मुश्किल बढ़ाई। सुप्रीम कोर्ट में भी गवाहों पर हमला और उनकी सुरक्षा को लेकर कई बार मसला उठा। एक बार तो गवाह पर हमले के मामले में अदालत ने अपने बयान में खुद कहा था कि, क्यों न आशीष मिश्र की जमानत रद्द कर दी जाए।
10 फरवरी को हाईकोर्ट ने आशीष मिश्र की जमानत आदेश पर फैसला उनके पक्ष में सुनाया, लेकिन जमानत आदेश में त्रुटि होने पर 11 फरवरी को अदालत में पहले करेक्शन एप्लीकेशन डाली गई, जिस पर 14 फरवरी को जमातन आदेश आया। लिहाजा 15 फरवरी को आशीष मिश्र मोनू की रिहाई हो सकी। लेकिन, दो महीने बाद ही पूरा सीन बदल गया और उसके लिये वापस जेल के रास्ते खुल गए, जिसमें सबसे ज्यादा उसकी मुश्किल गवाहों पर हमले के मामले से बढ़ी।
10 मार्च को तिकुनिया थाना क्षेत्र के डांगा इलाके में तिकुनिया हिंसा के गवाह दिलजोत सिंह पर हमला हुआ। उसके बाद अप्रैल महीने में रामपुर में हरदीप सिंह पर हमला हुआ। 10 मार्च को तिकुनिया थाना में रिपोर्ट दर्ज कराने वाले गवाह दिलजोत सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि जब वह 10 मार्च को डांगा इलाके से गन्ना भरी ट्रॉली लेकर गुजर रहा था तभी भाजपा की जीत का जश्न मना रहे लोगों ने उससे बदसलूकी की और विरोध करने पर बेल्ट से पिटाई कर दी।
साथ ही यह भी आरोप लगाया था कि हमलावरों ने उनसे यह कहते हुए जान से मारने की धमकी दी थी कि अब मोनू भैया जमानत पर वापस आ गए हैं और गवाहों को सबक सिखाया जाएगा। घटना के बाद भारतीय किसान यूनियन चढूनी गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने तिकुनिया पहुंचकर कौड़ियाला गुरुद्वारा में किसान महापंचायत भी की थी। वहीं, मामले में किसानों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने भी इस मसले को अदालत में उठाया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से रिपोर्ट तलब की थी और सभी गवाहों को सुरक्षा देने का निर्देश दिया था।