उत्तर प्रदेशवाराणसी

गर्भाशय की टीबी से संतान सुख मिलने में होती है बाधा

  • -पीड़ित महिलाओं का वजन भी तेजी से गिरता है
  • -समय से उपचार पर मिलने पर रोग से मिल जाती है मुक्ति

वाराणसी। गर्भाशय की टीबी से पीड़ित महिलाएं संतान सुख से वंचित रहती है। उनका वजन भी लगातार घटता रहता है। समय पर इलाज नहीं होने से इसका संक्रमण गंभीर रूप ले लेता है। सही समय पर इलाज और नियमित दवाओं के सेवन से पीड़ित इस रोग से मुक्ति पा सकती है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय चिकित्सालय में एमसीएच विंग की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ आरती दिव्या बताती हैं कि उनकी ओपीडी में हर माह तीन.चार महिलाएं ऐसी समस्या लेकर आती है। जांच कराने पर पता चलता है कि जननांग में हुई टीबी उनके मां बनने में रुकावट डाल रही है। वह बताती हैं कि छह माह से एक वर्ष तक नियमित दवा के सेवन से ऐसी महिलाएं पूरी तरह ठीक होकर मां बनने की स्थिति में आ जाती है। लेकिन इसके लिए उनका सही समय से उचित उपचार जरूरी है।

डाॅ आरती दिव्या बताती हैं कि वैसे तो टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों, श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र को प्रभावित करती है। हालांकि कुछ मामलों में नाखून व बाल को छोड़कर शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। यदि कोई महिला गर्भधारण करना चाहती है और वह गर्भवती नहीं हो पा रही है तो इसकी वजह जननांग की टीबी भी हो सकती है।

वह कहती हैं कि किसी महिला के जननांग में टीबी होती है तो टीबी का बैक्टीरिया उसके यूटरस की दीवारों और इसकी नलियों को खराब कर देता है। टीबी का बैक्टीरिया मुख्य रूप से फैलोपियन ट्यूब को बंद करता है। इससे पीरियड्स रेग्युलर नहीं आते हैं। कुछ मामलों में पीरियड्स पूरी तरह से रुक जाते हैं क्योंकि यूटरस की परत को यह गहराई तक प्रभावित कर देता है। समय पर इलाज नहीं होने से यह संक्रमण गंभीर रूप ले लेता है।

क्या है लक्षण

प्रारंभिक चरण में गर्भाशय टीबी का कोई लक्षण नहीं दिखता है। लेकिन सात या आठ महीने के बाद इसके लक्षणों को देखा जा सकता है। गर्भाशय की टीबी से पीड़ित महिलाओं में योनि स्राव, पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द, अनियमित पीरियड्स, वजन का तेजी से कम होना जैसी समस्याएं होने लगती है।

कैसे होता है उपचार

गर्भाशय की टीबी है या नहीं इसका पता लगाने के लिए ट्यूबरकुलीन स्किन टेस्ट के साथ ही ब्लड टेस्ट कराया जाता है। जरूरत के अनुसार यूटरस की बायोप्सी भी करायी जाती है। इसके अलावा जेनेटिक टेस्ट भी होता है। जिससे टीबी के इंफेक्शन का पता चलता है। डॉ आरती बताती हैं कि ऐसे मरीजों को 6 महीने तक टीबी की दवा नियमित तौर पर खाना जरूरी होता है। फिर भी रोग के ठीक न होने पर टीबी की दवा 12 माह तक भी दी जाती है। उन्होंने बताया कि सभी सरकारी अस्पतालों में इसके उपचार की व्यवस्था है। सरकार इलाज के दौरान पोषण के लिए पांच सौ रुपये की धनराशि प्रतिमाह मरीज के खाते में सीधे भेजती है।

पीड़ित महिला हुई स्वस्थ और गर्भवती भी

पांडेयपुर दौलतपुर की रहने वाली सोनी (परिवर्तित नाम) को विवाह के चार वर्ष बाद भी संतान सुख नहीं नहीं था। वह बीमार रहने लगी थी और वजन लगातार घटता जा रहा था। डेढ वर्ष पूर्व सोनी ने दीनदयाल चिकित्सालय के एमसीएच विंग में उपचार शुरू कराया। जांच हुई तो पता चला कि उसे गर्भाशय की टीबी है। लगभग एक वर्ष तक नियमित दवा के सेवन से ठीक हो गयी। अब वह मां भी बनने वाली है।

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