सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों के सभी पात्र पेंशनभोगियों को वन रैंक-वन पेंशन के बकाए के भुगतान के मुद्दे पर रक्षा मंत्रालय की खिंचाई की। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की शुचिता बनाए रखनी होगी। भारतीय पूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएमएम) ने याचिका दायर की है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने याचिका पर सुनवाई की।
दरअसल, वन रैंक-वन पेंशन (ओआरओपी) योजना के बकाये का भुगतान चार के बजाय एक ही किस्त में करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। याचिका दायर करने वाले पूर्व सैनिकों के एक समूह ने शीर्ष अदालत से इस संदर्भ में केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की थी। याचिका में रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी 20 जनवरी, 2023 के केंद्र के संवाद को रद्द करने की भी मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने भुगतान के लिए तय की गई समयसीमा बढ़ाने के लिए एक परिपत्र जारी करने को लेकर संबद्ध सचिव से स्पष्टीकरण मांगा। शीर्ष अदालत ने नौ जनवरी को सशस्त्र बलों के सभी पात्र पेंशनभोगियों को ‘ओआरओपी’ के कुल बकाये के भुगतान के लिए केंद्र को 15 मार्च तक की समयसीमा दी थी, लेकिन 20 जनवरी को मंत्रालय ने यह परिपत्र जारी किया कि बकाया रकम का भुगतान चार वार्षिक किस्तों में किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि हमने बकाये के भुगतान के लिए समय विस्तारित करते हुए 15 मार्च तक कर दिया था। अब नौ जनवरी के हमारे आदेशों के बाद आप यह परिपत्र कैसे जारी कर सकते हैं कि आप चार समान किस्तों में रकम का भुगतान करेंगे? हम आपके सचिव के खिलाफ कार्रवाई क्यों न करें? हमारे आदेश के बाद आप समयसीमा बढ़ाने के लिए एक प्रशासनिक परिपत्र के लिए आदेश कैसे जारी कर सकते हैं?
पीठ ने कहा कि आप अपने सचिव से कहें कि हम 20 जनवरी के परिपत्र को लेकर उनके खिलाफ कार्रवाई करने जा रहे हैं। न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को बरकरार रखना है। या तो सचिव इसे वापस लें, अन्यथा हम रक्षा मंत्रालय को अवमानना नोटिस जारी करने जा रहे हैं और यह बहुत गंभीर बात होगी। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि मंत्रालय को कानून अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए था और भुगतान के लिए समय विस्तारित करने का एकपक्षीय तरीके से परिपत्र जारी नहीं करना चाहिए था।